जीवन के परिप्रेक्ष में अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितयों का महत्त्व, प्रथम भाग

अगर हम अपने जीवन की सभी अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों पर मंथन करें तो बोध होगा की सभी एक दुसरे की पूरक और हमारे व्यक्तित्व को सुद्ढ़ तथा प्रभावशाली ढंग से रूपांतरित करती है | हम अपने जीवन की इन परिस्थितियों को प्रकाश और अंधकार के समानंतर् देख सकते हैं, जैसे हम प्रकाश में किसी भी वास्तु विशेष को अपनी द्रष्टी से देखने पर उसके मूल रूप को समझ सकते हैं परन्तु उसी वास्तु को अंधकार में देखे तो शायद ही पूर्णतः समझ सकें, यहां हम देखते हैं कि अंधकार के होने पर प्रकाश का महत्त्व प्रखर रूप से सामने आया है | इस बात को हम इस उदाहरण से पूर्णतः समझ सकते हैं, जब हम वायु के बहने की ही दिशा में चलते हैं तो हम सहजता से चलते हैं लेकिन हम अपने सामने से आ रही वायु की दिशा में चलते हैं तो हमें चलने में अपनी अत्यधिक ऊर्जा का प्रयोग करते हैं जिसमें हमारा प्रयास प्रखरता से सामने आ रहा है | अंततः निष्कर्ष यही निकलता है कि हमारे जीवन की सभी अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियां हमारे व्यक्तित्व को प्रखर रूप से सामने लाती हैं और हम इनक...