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जीवन के परिप्रेक्ष में अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितयों का महत्त्व, द्वितीय भाग

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 हम अगर विचार करें तो पाएंगे कि संसार में प्रत्येक वस्तु विशेष का महत्व है और कभी कभी तो एक का  गुण किसी दूसरे के कारण अविश्वसनीय ढंग से  उभर कर आता है, हम इस बात को कुछ इस तरह समझ सकते हैं जैसे अंधेर के कारण उजाले का महत्व बढ़ जाता है तथा दुःख के कारण सुख का इत्यादि |  उपरोक्त कथन पर मंथन करें तो हम इसको जीवन की चिरस्थायी दशा के रूप में देख पाएंगे | अपने स्वाभाव के अनुकूल परिस्थिति होने पर हम किसी भी कार्य को जिस कुशलता से कर लेते हैं क्या प्रतिकूल परिस्थति में भी उसी कुशलता से उस कार्य को पूरा कर पाते हैं, या हमारे कुशलता के स्तर में परिवर्नात आता हैं, यह जानना हमारे लिए अतिविशिष्ट होगा।  लगभग आप सभी मेरी इस बात से सहमत होंगे कि अगर हम प्रतिकूल परिस्थिति में किसी कार्य को अपने उद्धेश्य को प्राप्त करने हेतु  करते हैं तो हमारे समक्ष एक ऐसा अवसर आता है जब हम अपने मनोरथ को प्राप्त करने हेतु  प्रतिकूल परिस्थितिओं को भी अपने अनुकूल बदलने में अपनी क्षमताओं का संपूर्ण प्रयोग करते हैं, जबकि अनुकूल परिस्थित...