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जीवन का शाश्वत तत्व /जीवन का शाश्वत सत्य इसको प्राप्त करने का मार्ग 


जीवन दर्शन लाईफ की रोशनी मे यह प्रासंगिक ही होगा कि हम उस मार्ग को पहचानते हुए, उस पर चलकर  जीवन के शाश्वत तत्व को अपने अंतःकरण में आत्मसात करते हुए, मनुष्य समाज के कल्याणार्थ अर्पित करें | 

जीवन के शाश्वत तत्व से बोधित होने की प्रासंगिकता 

आपका यह स्वाभाविक सवाल हो सकता है कि मैं प्रासंगिक शब्द का प्रयोग क्यों कर रहा हूँ | लगभग आप सभी मेरी इस बात से सहमत होंगे कि हम आज जिस समाज में जीवन निर्वाह कर रहे हैं उसमे सर्वत्र कृत्रिमता का वास है | आज मनुष्य समाज ने भौतिक तथा मानवीय सम्पदा का कुशलतम उपयोग करते हुए मनुष्य जीवन के प्रत्येक  भाग को विकास की उस उत्कृष्टम स्तर को दिया है जहाँ पर मनुष्य अपने वजूद की सार्थकता के लिए पूर्णतः समाज पर निर्भर हो चूका है |यह कहना भी पूरी तरह से गलत नही होगा कि मनुष्य जीवन पूर्ण रूप से बहिर्मुखी और देहात्मबुद्धि दृष्टिकोण को आत्मसात कर चुका है और इस परिवेश में मिली हमारी पहचान और सामाजिक प्रतिष्ठा, हमारे शरीर के साथ जुड़े सुख - दुःख तथा शांति, हमारे भौतिक ऐश्वर्य  के साजोसामान सभी नश्वर और परिवर्तनशील है  | समाज के इस रूप में यह प्रासंगिक हो जाता है कि हम जीवन से ऐसे शाश्वत तत्व का अन्वेषण करें जो मनुष्य मात्र को अनश्वर तथा अपरिवर्तिनीय मूल्यों से युक्त कर सके | 

जीवन का शाश्वत तत्व 

मनुष्य समाज में जीवन के जिस मूल्य की प्रधानता है उसका आधार नश्वर तथा परिवर्तनशील है | जबकि हम सभी इस बात से भलि -भांति परिचित हैं कि चेतना ही जीवन का शाश्वत तत्व है जो समय की तीनो अवश्थाओं ( भूत, वर्तमान तथा भविष्य ) में समान रूप में विद्यमान
 है  | वैदिक ग्रन्थ श्रीमद्भगवतगीता को आधार मानकर इस चेतन तत्व को समझे तो यह बोध होता है कि यह चेतना अनश्वर, नित्य तथा अपरिवर्तनशील है | जबकि हमारा शरीर पंच महाभूत ( क्षिति, जल, पावक, गगन और समीर ) तत्वों से मिलकर निर्मित हुआ है और अपने नियत समय चक्र के विभिन्न अवस्थाओं जैसे बाल्यावस्था, यौवनावस्था तथा वृद्धावस्था को प्राप्त करते हुए मृत्यु द्वारा समाप्त हो जाता है | हम अपने शरीर के नश्वर रूप को भली प्रकार से समझते हैं फिर भी हमारे ऊपर नश्वर तथा परिवर्तशील जीवन मूल्यों का प्रभाव इस कदर है कि हम इसे ही जीवन का शाश्वत तत्व समझते हुए इनसे युक्त अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा तथा भौतिक ऐश्वर्य को चाहते हैं, जो कि नश्वर है | 

जीवन के शाश्वत तत्व को प्राप्त करने का मार्ग 

जीवन के शाश्वत तत्व को प्राप्त करने के जिस मार्ग का में उल्लेख करने जा रहा हूँ उस मार्ग का आरम्भ बिंदु स्वयं हमारा वजूद है जबकि इस मार्ग का गंतव्य हमारी चेतना की गहराई है और इस मार्ग पर चलने हेतु ध्यान रूपी वाहन है | यहाँ पर मेरा चेतना की गहराई में उतरने के पीछे इतना मंतव्य है कि  हम अपनी पांच ज्ञानेन्द्रियों  ( कान, आँख, नाक, जीभ तथा त्वचा ) तथा पांच कर्मेन्द्रियों ( हाथ, पैर, मुहँ, माथा तथा जनेन्द्रिय ) द्वारा प्राप्त ज्ञान को केवल साक्षी भाव मतलब एक दर्शक की भाँती देखें | जब हमारे अन्तःस्थल में साक्षी भाव का बोध प्रगट हो जाएगा तो हम स्पष्ट  देख सकेंगे कि सब जीवों में एक ही शाश्वत तत्व जो चेतना रूप में सभी जीवों में प्रकट हुआ है और जो फर्क है भी तो वह केवल भौतिक शरीर का है |  

जीवन के शाश्वत तत्व को प्राप्त करने हेतु सहायक

आज समाज में हम देख रहे हैं कि सर्वत्र कृत्रिमता, देहात्मबुद्धि तथा भौतिकता  का वास है जिसकी वजह से जीवन का शाश्वत तत्व समाज में अप्रकट है | हम इस बात को भी भली प्रकार से समझ सकते हैं कि आज हर व्यक्ति ने अपने वजूद पर अनगिनत मुखौटे लगा रखें हैं, जिसकी वजह से हर व्यक्ति केवल भौतिक रूप से ही अन्य व्यक्ति से जुड़ता है | इन सभी परिस्थितियों में मनुष्य में भेद की सत्ता के साथ अनगिनत दोषों जैसे केवल स्वयं की श्रेष्ठता, छल, कपट, झूठ, लालच, क्रोध, हिंसा इत्यादि  प्रगट होती है | यहाँ पर हम यह स्पष्ट समझ और देख पा रहे हैं कि मनुष्य समाज में इन बुराइयों के मूल में अविश्वाश रूपी कारण है | जीवन की इन परिस्थितियों में हमें जीवन के शास्वत तत्व को प्राप्त करने का जो माध्यम सहायक हो सकता है, वह है कि हम अपने व्यक्तित्व पर से सभी मुखौटों को उतार कर तथा मन, वचन और कर्म की एकता द्वारा समाज में अपनी एक पहचान रखें | हम अपने जीवन दृष्टिकोण में मन, वचन और कर्म की एकता को समाज में अपनी पहचान बनाएं तो यह समाज में सभी मनुष्यों के बीच विश्वास का अंकुरण स्वयं रोपित करता जाएगा, जिसके फलस्वरूप समाज में एक ऐसे मनुष्य का आविर्भाव होगा जो सर्वत्र जीवों में जीवन के शाश्वत तत्व चेतना का विस्तार जो शाश्वत सत्य भी है का अपने  अनुभव में आत्मसात कर सकेगा | 

उपसंहार 

उपरोक्त तथ्यों की रौशनी में यह बात स्वयं सिद्ध है कि हमें अपने जीवन में अगर अपनी अनश्वर और अपरिवर्तशील पहचान को समाज में स्थापित करनी है तो हमें जीवन के शाश्वत तत्व को अपने जीवन दृष्टिकोण के हर भाग में आधार बनाना होगा |इसके पश्चात मनुष्य की वह उत्कृष्टतम अवस्था होगी  जब उसे सभी जीवों मे एक ही चेतना का विस्तार का बोध होने के साथ  अहं ब्रह्मास्मि तथा तत्वमसि महावाक्य उसके अंतःकरण में प्रकट हो जाते है, जिसके उपरांत उसके आत्मबोध में ब्रह्म और जीव की एकता प्रकट होने के साथ ही सारे ब्रह्मांड के ब्रह्ममय होने के भाव का उदय हो जाता है| 



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