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जीवन का शाश्वत तत्व और इसको प्राप्त करने का मार्ग

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जीवन का शाश्वत तत्व /जीवन का शाश्वत सत्य इसको प्राप्त करने का मार्ग  जीवन दर्शन लाईफ की रोशनी मे यह प्रासंगिक ही होगा कि हम उस मार्ग को पहचानते हुए, उस पर चलकर  जीवन के शाश्वत तत्व को अपने अंतःकरण में आत्मसात करते हुए, मनुष्य समाज के कल्याणार्थ अर्पित करें |  जीवन के शाश्वत तत्व से बोधित होने की प्रासंगिकता  आपका यह स्वाभाविक सवाल हो सकता है कि मैं प्रासंगिक शब्द का प्रयोग क्यों कर रहा हूँ | लगभग आप सभी मेरी इस बात से सहमत होंगे कि हम आज जिस समाज में जीवन निर्वाह कर रहे हैं उसमे सर्वत्र कृत्रिमता का वास है | आज मनुष्य समाज ने भौतिक तथा मानवीय सम्पदा का कुशलतम उपयोग करते हुए मनुष्य जीवन के प्रत्येक  भाग को विकास की उस उत्कृष्टम स्तर को दिया है जहाँ पर मनुष्य अपने वजूद की सार्थकता के लिए पूर्णतः समाज पर निर्भर हो चूका है |यह कहना भी पूरी तरह से गलत नही होगा कि मनुष्य जीवन पूर्ण रूप से बहिर्मुखी और देहात्मबुद्धि दृष्टिकोण को आत्मसात कर चुका है और इस परिवेश में मिली हमारी पहचान और सामाजिक प्रतिष्ठा, हमारे शरीर के साथ जुड़े सुख - दुःख तथा शांति, हमारे भौतिक ऐश्वर्य...

सामाजिक परिवेश में वैराग्य की उपयोगिता

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सामाजिक परिवेश में वैराग्य की उपयोगिता  भारतीय दर्शन में समाहित वैराग्य के सन्देश को मूल रूप में अपने जीवन व्यव्हार में उतारकर हम अपने को ऐसे सोपान पर पांएगे जहाँ पर हमारा आदर्शतम व्यक्तित्व होगा |   वर्तमान में वैराग्य के संदर्व में व्याप्त आम धारणा यह है कि अपने घर -परिवार तथा समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व को  छोड़ कर किसी अनजान जगह में रहते हुए भिक्षा मांग कर अपना जीवन निर्वाह करना | वैरागी जीवन का यह रूप समाज द्वारा भी पूर्णरूप से स्वीकार होगा एक मृगमरीचका के समान ही है |  भारतीय दर्शन में वैराग्य के विषय में मुख्य तौर पर दो सिद्धांत सामने आतें है, एक यह कि  संसार एक ऐसा मायाजाल है जहाँ पर हम इसके नश्वर रूप को अखंड सत्य मानते हुए इसे अपने जीवन मूल्यों में उतार कर  जीवन जीते हैं  तथा दूसरा यह कि हमारा जीवन नश्वर है |   उपरोक्त उल्लखित शाश्वत सिद्धांतो में निहित सन्देश मुख्यतौर पर यही है कि हम संसार के परिवर्तनशील तथा अस्थिर गुणों के साथ मानव जीवन की नश्वरता को समझते हुए अपने जीवन में ऐसा आ...

क्या हमारे देश की राजनीति पतनोमुखी हो चुकी है

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  क्या हमारे देश की राजनीति पतनोमुखी हो चुकी है अगर हम एक आदर्श समाज की नींव बनाने पर मंथन करें तो जो अतिविशिष्ट ईट नींव में डलेगी वह राजनीती रूपी ईट  होगी | इस बात को हम अच्छी तरह से समझ सकते हैं कि अगर हमारे समाज की नींव मजबूत होगी तो यह भी सिद्ध है की हमारे जीवन मूल्य भी मजबूत और अपरिवर्तनशील  होंगे |  यह अटल सत्य है कि हम व्यक्तिगत जीवन जीते हुए एक आदर्श समाज के चहुंमुखी निर्माण में हम अपना योगदान तो दे सकते हैं परन्तु सक्रिय रूप से अपने को समर्पित नहीं कर सकते |  अतः हम ऐसे व्यक्ति जिन्हे हम राजनेता कहते हैं को चुनते है, जो एक आदर्श समाज के निर्माण को समर्पित हो, मानवीय और प्राकर्तिक सम्पदा का उपयोग कर एक समृद्ध सामाजिक, आर्थिक,राजनैतिक, धार्मिक और वैदेशिक इत्यादि वातावरण बनाता है | इस बात को हम आसानी से समझ सकते हैं कि एक समृद्ध समाज में ही मनुष्य का उर्ध्वगामी विकास हो सकता है, जो नित्य होगा अन्यथा मनुष्य के विकास की पराकाष्टा एक ऐसी  इमारत के समान होगी जिसकी नींव कमजोर रेत के धरातल पर बनी हो जो अवश्य ही ए...

पाब्लो और ब्रूनो के जीवन दर्शन में निहित अमूल्य विचार पर एक दृष्टांत

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जीवन दर्शन लाइफ की रौशनी में आज मैं अमेरिकन लेखक और बिज़नेस कोच बर्क हेजस (BURK HEDGES) की प्रसिद्द किताब ( PARABLE OF PIPELINE ) से प्रेरणात्मक पाब्लो और ब्रूनो की कहानी को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा  हूँ, जिसमें संलिप्त सन्देश  को हम अपने जीवन  में अंगीकार कर आर्थिक स्वतंत्रता की स्थिति को बहुत ही  सहजता से  प्राप्त कर सकते हैं :- एक गांव में पाब्लो और ब्रूनो नाम के दो मित्र जो  काफी सकारात्मक तथा अपने सुनहरे भविष्य  को हकीकत का रूप देने हेतु अवसर की तलाश में रहते थे |   पाब्लो और ब्रूनो को यह अवसर भी जल्द ही मिल जाता है जब गांव के मुखिया उनके सामने किसी अन्य जगह से गांव में पानी लाने के लिए उचित पारिश्रमिक देने का प्रस्ताव रखते हैं जिसे वे सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं | अगले दिन से ही पाब्लो और ब्रूनो अपनी अपनी बाल्टियों से उस जगह से गांव  में पानी लाना  शुरू कर देते हैं |  अब वे सुबह से शाम तक गांव में पानी लाते और शाम को थक कर अपने घरों को लौट जाते, ऐसा वे महीनों तक करते रहे | इनमें पाब्लो अत्यधिक खुश ...

अवचेतन मन है, हमारे उज्जवल भविष्य का आधार

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अवचेतन मन है, हमारे उज्जवल भविष्य का आधार f  जीवन दर्शन लाइफ की रोशनी में हम आज आधुनिक जगत के, FATHER OF PSYCHOANALYSIS , कहे जाने वाले, सम्मानीय व्यक्ति  SIGMOND FREUD द्वारा उजागर समग्र ज्ञान के एक अंश को बोध गम्य करने का प्रयास कर रहें हैं जो हमारे व्यक्तित्व के निर्धारण में लगभग 90% योगदान रखता है, से अवगत होना हमारे लिए अति कल्याणकारी होगा |  हम बात कर रहे हैं अवचेतन मन ( UNCONSCIOUS MIND ) के विषय में जो हमारे जीवन निर्माण के हर भाग के सूत्रधार हैं |  SIGMOND FREUD ने मानव मन को तीन भागों के अंतर्गत विश्लेषित किया है, जो मुख्यतः चेतन, अर्धचेतन तथा अवचेतन हैं और मानव मन को समुद्र में व्याप्त हिम खंड के सामान माना है | जिस प्रकार समुद्र में व्याप्त हिम खंड का 10% भाग ही हमें दिखता है तथा शेष 90% भाग समुद्र के जल की वजह से नही दिखता, ठीक इसी के सामानांतर मानव मन का चेतन भाग 10% तथा अवचेतन भाग 90% और अर्धचेतन  मानव मन की ऐसी दशा है जिसमें कुछ जाग्रत व् कुछ सुप्त अवस्था का बोध होता है | हमारा अवच...

कोरोना महामारी के प्राणघातक हमले से अपने तथा अपने परिजनों की स्वयं सुरक्षा करें (Protect yourself and your family from the fatal attacks of the corona epidemic)

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 आज हम कोरोना वायरस के द्वितीय स्तर पर इसके भयंकरतम प्रभाव को मौत के तांडव रूप में चारों ही दिशाओं में देख हैं | वर्ष  2021 में कोरोना महामारी की वजह से अधिकतर मौतों की जो वजह प्रमुखता से हमारे समक्ष आ रही है, उसके मूल में मनुष्य की स्वशन प्रक्रिया का बाधित होना है | देश में आए दिन कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या दिन -प्रतिदिन  बढ़ती ही जा रही है | पिछले वर्ष हम कोरोना वायरस के विषय में ना तो अधिक जानते ही थे और ना ही इसके इलाज के विषय में निश्चित ही थे फिर भी इस की वजह से संक्रमित मरीजों की अधिकतम  संख्या एक दिन में सर्वाधिक सितम्बर माह में, पूरे देश में एक लाख से कम तथा मृत्यु पांच सौ से कम ही थी | जबकि आज हम इस वाइरस के विषय में तथा अपने बचाव के विषय में बहुत कुछ जानते हैं, फिर भी 21, अप्रेल 2021 के दौरान देश में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या  तीन लाख के आंकड़े को पार कर चुकी है और मृत्यु 2200 के आस -पास रही है  जो  विश्व के किसी भी देश में एक दिन में...

वर्तमान समय में श्रीमद्भगवत्गीता के कर्मयोग सिद्धांत की उपयोगिता (The utility of the Karmayoga principle of Srimad Bhagavat Gita in the present day)

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श्रीमद्भगवतगीता में श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को अपने कर्तव्यपथ पर अग्रसर करने हेतु जिस  कर्मयोग सिद्धांत का उपदेश दिया गया, उसको हम समझें तो यह स्वतः सिद्ध हो जाता है कि श्री कृष्ण का ध्येय केवल अर्जुन को अपने कर्तव्य का बोध कराना ही नहीं था बल्कि मनुष्य मात्र को ज्ञान की ऐसी रोशनी प्रदान करना था, जहाँ पर मनुष्य अपने आत्म तत्व से साक्षात्कार करते हुए परम शांति तथा सम्पूर्णता के भाव से भरकर अपने मूल स्वभावानुकूल अपने जीवन में कर्म को ऐसे भाव में लिप्त हो करे कि उस पर कर्म बंधन का प्रभाव उसके तथा समाज के लिए कल्याणकारी सिद्ध हो |   हम  जिस भौतिक परिवेश में अपना जीवन निर्वाह कर रहे हैं, उसके प्रभाव में हम हर क्षण किसी न किसी कार्य को कर रहे होते हैं, अगर हम आराम से बैठे हैं तब भी हम कुछ न कुछ सोच रहे होते हैं या देख रहे होते हैं और कुछ भी नहीं तो हम अपने कर्म के रूप में श्वांस तो ले ही रहे होते हैं | यह कहना गलत नहीं होगा कि मनुष्य में जब तक प्राण वायु है या यूँ कहे मनुष्य जब तक जीवित है एक क्षण के लिए भी बिना कर्म किये ...

प्रत्येक व्यक्ति शरीररूपी भौतिक रथ पर सवार है (Everyone rides a physical chariot )

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  वैदिक साहित्य ( कठोपनिषद :  १, ३, ३, ४ )   आत्मानं रथिन विद्धि शरीरं रथमेव च   बुद्धि तु सारथि विद्धि मनः प्रग्रहमेव च |  इंद्रियाणि हयानाहुवीर्षयांस्तेषु  गोचरान  आत्मेन्द्रियमनोयुक्तं भोक्तेत्याहुमर्रनीषिण | |  

हमारे जीवन में सफलता का वास्तविक आधार The real basis of success in our life

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मैं आज जीवन दर्शन लाइफ के इस भाग में जीवन के उस पहलु पर प्रकाश डाल रहा हूँ जिसमें हम अपने तय किये हुए लक्ष्यों को प्राप्त करने में असफल क्यों होते हैं | अपने विचार रखूं उससे पहले प्रासंगिक ही होगा  कि हम सफलता को हम अपने लिए किस परिप्रेक्ष में देखते हैं को समझ लें   तदुपरांत ही हम इस अति गंभीर विषय को समझ सकने में समर्थ  हो सकेंगे :- अगर हम सफलता के लिए आधार स्वरुप समाज में व्याप्त किसी भी उत्कर्ष स्थिति चाहें सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक तथा आध्यत्मिक इत्यादि जीवन में दुर्लभ ऐशो आराम और प्रसिद्धि को देखकर तय करें तो यह सत प्रतिसत संभव नहीं है कि हम अपने द्वारा तय किये हुए लक्ष्य को प्राप्त कर सकें, लेकिन यह सत - प्रतिसत संभव है अगर हम अपना लक्ष्य अपने मूल स्वाभाव तथा प्रकृति को देखते हुए तय करते हुए वांछित प्रयास करें |               जिस प्रकार एक बीज में एक मुकम्मल वृक्ष का आधार छिपा होता है उसी प्रकार हमारे जीवन में तय लक्ष्यों में सफलता को पाने का आधार हमारे ...

आओ पैसे का पेड़ लगाएं, द्वितीय भाग

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मैंने अपने पिछले ब्लॉग में पैसे का पेड़ लगाने हेतु निवेश रूपी बीज का उल्लेख किया था, जिसको उर्वर भूमि में रोपित कर हम पैसे का पेड़ लगा सकते हैं | अब प्रासंगिक ही होगा कि हम निवेश रूपी बीज को रोपित करने की प्रक्रिया पर रोशनी डालें |   यहाँ पर हम एक बीज से पौधा बनने तथा फिर उसके पेड़ बन कर समाज के लिए  किस प्रकार उपयोगी सिद्ध होता है के सामानांतर ही निवेश रूपी बीज को भी एक पौधा तथा पेड़ के रूप में मनुष्य की संभव तथा असंभव इच्छाओं जो पैसे से पूरी हो सकती हैं को फलीभूत करते स्पष्ट तौर पर देख सकते हैं |  अगर हम फल के रूप में आम को प्राप्त करना चाहतें हैं तो पहले हम आम का उत्तम बीज प्राप्त कर उस बीज को उपजाऊ जमीन में खाद मिलाने के बाद रोपित तथा जल द्वारा सिंचित कर उस स्थान की उचित देखभाल कर फिर एक निश्चित समयावधि उपरांत हमें उस स्थान पर आम का पौधा उगा हुआ दिखेगा, यहाँ पर हमें इस पौधे को प्रतिकूल परिस्थितियों से बचाते हुए पेड़ बनने तक उचित देखभाल करनी होगी और जब एक बार यह  आम का पौधा एक आम के पेड़ के रूप में अपने विकास की सर्वोत्त...

आओ पैसे का पेड़ लगाएं, प्रथम भाग

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हम सभी इस बात से सहमत होंगे कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं और अपनी दिन -प्रतिदिन की लगभग सभी  आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए समाज पर निर्भर है | मनुष्य अपने जीवन के प्रत्येक कालक्रम में अपनी आवश्यकताओं को  प्राप्त करने के बदले स्वरुप अथार्त विनिमय के माध्यम के रूप में कभी वस्तु तो कभी किसी कीमती धातु और अब सांकेतिक मुद्रा के रूप में कागजी मुद्रा तथा धातु से बने सिक्कों का उपयोग कर रहा है |   उपरोक्त तथ्यों के उल्लेख द्वारा हम जिस नित्य तत्व को देख रहे हैं वह मनुष्य का अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के उपरांत किसी वस्तु या धातु को विनिमय के माध्यम के रूप में देना है  |    यह भी स्वतः स्पष्ट है कि हम अपनी आवश्यकताओं तथा इच्छाओं को पूरा करने के लिए अपनी कार्य कुशलता अनुसार किसी आर्थिक गति -विधि में संलिप्त होते हैं | इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि अगर हम किसी  आर्थिक कार्य को  पूरा करेंगे तभी हम अपने जीवन की सभी आवश्यकताओं तथा इच्छाओं पूरा  कर पाएंगे अन्यथा हमें अपने जीवन की जरूरी  आवश्य...

बंधन से स्वतंत्रता है पूर्ण मनुष्य के विकास की ओर पहला कदम

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 यह कहना गलत नहीं होगा कि जिस प्रकार  प्रकाश और ऊष्मा प्रसारित करना सूर्य का स्वाभाविक गुण है उसी तरह प्रत्येक जीव का विकास उसके क्रमानुसार हो वह उसका स्वाभाविक गुण है | अब बंधन चाहें शारीरिक हो या मानसिक, बंधन सदा स्वाभाविक विकास को अवरुद्ध तथा विकास की सर्जनशील शक्ति को कम ही करेगा | इस बात को हम एक उदाहरण द्वारा  सटीकता से  समझ सकते हैं, जिसमें दो पक्षी जो समान जाति, समान अवस्था तथा समान रंग -रूप के हैं परन्तु उन दोनों पक्षियों को उड़ने के लिए अलग -अलग स्थान  दिया जाता है, इनमें एक पक्षी को पूरी तरह पिंजड़े की तरह बंद हॉल दिया जाता है जबकि दुसरे पक्षी को खुले आसमान में उड़ने को स्वतंत्र छोड़ दिया जाता है | हम एक निश्चित समयावधि के बाद दोनों पक्षियों को देखें तो पाएंगे कि जिस पक्षी को उड़ने के लिए  पिंजड़े नुमा हॉल दिया गया, अब अगर उस पक्षी को खुले आसमान में उड़ने के लिए छोड़ा जाये तो वह हॉल की ऊँचाई जितना ही  उड़ कर वापस जमीन पर बैठ जाएगा जबकि दुसरे पक्षी की उड़ने की शक्ति असीमित हो चुकी है | यहाँ पर यह बात तो स्वतः स्पष्ट है कि बंधन ...

जीवन में नित्य सौंदर्य बोध पर एक दृष्टांत

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 हम सौंदर्यबोध पर मानव स्वाभाव का मंथन  करें तो हमें जो मूल रूप से मिलेगा वह उसकी इंद्रिय प्रधान अनुभूतिओं द्वारा ग्रसित भाव होगा  जो अवश्यम्भावी क्षणभंगुर है जिसमें नित्यता की छाया केवल मृगमरीचका के समान है | अगर मैं साफ शब्दों में कहूं तो मनुष्य में यह सौंदर्य बोध भौतिकता के साथ जुड़ा हुआ है तथा जिसमें   नित्यता का आभाव संलिप्त है |  नित्यता को हम कुछ इस प्रकार भी समझ सकतें हैं जैसे बर्फ को छुएं तो हमें सदा  इसके ठंडक होने का ही अहसास होगा और अग्नि को छुएं तो हमें सदा इसके गरम होने का ही अहसास होगा जो इनके अपरिवर्तनशील गुंण को दर्शाता है, यही अपरिवर्तनशील गुंण बर्फ और अग्नि के स्वाभाव को नित्यता से संलिप्त करता है | उपरोक्त तथ्यों की रोशनी में यह बात स्वतः ही स्पष्ट होती है कि अगर मानव में सौंदर्य बोध बाहरी भौतिक घटकों के स्थान पर जीवन की निरन्तरता के बोध पर आश्रित हो तो मानव में सौंदर्य बोध निरंतर हो सकेगा जिसके उपरांत एक ऐसे विराट मानव स्वाभाव का सर्जन होगा जो समस्त मानव में 'एक ही चेतना का विस्तार ' का अनुभव...

मनुष्य जीवन 'पथ -प्रदर्शक' के रूप में

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हम लगभग हर मार्ग पर प्रकाश स्तंभ को देखते हैं, जहाँ अंधकार होने पर प्रकाश की रोशनी में हम अपने मार्ग को सहज ही देख पाते हैं।  जिस प्रकार एक प्रकाश स्तंभ मुसाफिर को अपने गंतव्य तक पहुँचने मे मदद करता है, उसी तरह एक व्यक्ति का जीवन-दर्शन भी समाज को युग युगांतर तक मानवता के उत्थान हेतु मार्ग प्रशस्त करता है, जब उस व्यक्ति का सम्पूर्ण जीवन  समष्टि भाव से ओत -प्रोत हो |  समष्टि भाव को हम सूर्य के जीवन चक्र द्वारा भी सटीकता से समझ सकते हैं, सूर्य अपनी गति के क्रमानुसार सम्पूर्ण गोचर जगत को अपनी ऊष्मा तथा रोशनी बिना किसी भेद -भाव के सर्वत्र सामान रूप से प्रदान करता है |  अगर हम मानव जीवन के इतिहास में महापुरुषों के जीवन दर्शन को देखें तो हमें उनके चिंतन -मनन में समष्टि भाव ही दिखेगा | समष्टि भाव से ओत -प्रोत मानव चेतना ने सर्वदा अन्य मनुष्यों के सुख -दुःख, आशा -निराशा, प्रसन्नता -अप्रसन्नता, हंशना -रोना  इत्यादि को अपना ही माना है, या इसे ऐसे भी कह सकते हैं जैसे अन्य पुरुष रोता है तो ये दुखी होते हैं, अन्य पुरुष खुश होता है तो ये...

आदर्श समाज की धुरी पर एक दृष्टांत

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आज मैं समाज के जिस अंग पर रोशनी डाल रहा हूँ, प्रासांगिक ही होगा कि हम  पहले  " धुरी " शब्द पर विचार कर लें तदुपरांत ही विषय की गंभीरता को समझें | आज अपने दैनिक जीवन में हम लगभग प्रत्येक मशीन  को चलाने के लिए व्हील या जिसे पहियाँ कहते हैं का प्रयोग करते हैं | बात चाहें यातायात के साधन (बस ,कार ,रेल ,मोटरसाइकिल, हवाई जहाज ,अंतरिक्ष यान , साइकिल , बैलगाड़ी इत्यादि ), किसी भी कम्पनी में वस्तुएं निर्माण हेतु प्रयुक्त मशीनों या  बिजली निर्माण में प्रयुक्त टरबाइन तथा अन्य मशीने इत्यादि,  की हो हम वहां व्हील के प्रयोग द्वारा इन सभी मशीनों को चलता हुआ देखते हैं और इस व्हील के केंद्र को हम " धुरी " कहते हैं | अगर हम बात अपने सौरमंडल की करें तो जिस केंद्र पर सूर्य और अन्य गृह घूम रहे हैं उस केंद्र को हम " धुरी " ही कहते हैं |  उपरोक्त तथ्यों की रोशनी में यह बात तो स्वतः ही स्पष्ट हो जाती है कि व्हील की " धुरी " का उचित ढंग से प्रयोग नहीं होने पर सभी मशीनों की उत्कृष्टतम कार्यकुशलता नहीं मिल सकेगी | इस प्रकार हम अपन...

हम अपने जीवन को समय की गति के साथ कैसे गतिशील करें

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अगर हम अपने  जीवन लक्ष्य पर विचार करें तो पाएंगे कि अधिकतर हम आत्म -संतुष्टि , परम- आनंद, अतुलनीय  सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि इत्यादि  को प्राप्त करना मुख्य तौर पर होता है |   हम अपने जीवन लक्ष्यों को प्राप्त करने का आधार अपनी इंद्रियों द्वारा चयनित मार्ग को बनाते हैं जो अधिकांशतः भौतिक सम्पदा को प्राप्त करना होता है, यहां हम स्पष्ट्तः ही देख सकते हैं कि अगर हमारी भौतिक सम्पदा क्षीण होती है तो जीवन लक्ष्य भी अक्षुण नहीं रह सकेगा |  यहां पर प्रासांगिक होगा कि हम अपने जीवन लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु ऐसे मार्ग के विषय में विचार करें जो हमारे लक्ष्य को अक्षुणता प्रदान कर इसे समय की सीमा के पार हर देश काल में जीवन्तता प्रदान कर समाज में एक प्रेरणास्रोत उदाहरण बन सके |  अगर हम अपने जीवन लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु अपना मार्ग भौतिक सम्पदा को प्राप्त कर स्वयं के हित के साथ-साथ मानव -मात्र के हित के विषय में भी सोचते हैं तो  हमारी भौतिक सम्पदा में कमी आने पर भी हमारा जीवन लक्ष्य अक्षुण र...

जीवन के परिप्रेक्ष में अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितयों का महत्त्व, द्वितीय भाग

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 हम अगर विचार करें तो पाएंगे कि संसार में प्रत्येक वस्तु विशेष का महत्व है और कभी कभी तो एक का  गुण किसी दूसरे के कारण अविश्वसनीय ढंग से  उभर कर आता है, हम इस बात को कुछ इस तरह समझ सकते हैं जैसे अंधेर के कारण उजाले का महत्व बढ़ जाता है तथा दुःख के कारण सुख का इत्यादि |  उपरोक्त कथन पर मंथन करें तो हम इसको जीवन की चिरस्थायी दशा के रूप में देख पाएंगे | अपने स्वाभाव के अनुकूल परिस्थिति होने पर हम किसी भी कार्य को जिस कुशलता से कर लेते हैं क्या प्रतिकूल परिस्थति में भी उसी कुशलता से उस कार्य को पूरा कर पाते हैं, या हमारे कुशलता के स्तर में परिवर्नात आता हैं, यह जानना हमारे लिए अतिविशिष्ट होगा।  लगभग आप सभी मेरी इस बात से सहमत होंगे कि अगर हम प्रतिकूल परिस्थिति में किसी कार्य को अपने उद्धेश्य को प्राप्त करने हेतु  करते हैं तो हमारे समक्ष एक ऐसा अवसर आता है जब हम अपने मनोरथ को प्राप्त करने हेतु  प्रतिकूल परिस्थितिओं को भी अपने अनुकूल बदलने में अपनी क्षमताओं का संपूर्ण प्रयोग करते हैं, जबकि अनुकूल परिस्थित...

जीवन के परिप्रेक्ष में अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितयों का महत्त्व, प्रथम भाग

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अगर हम अपने जीवन की सभी अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों  पर मंथन करें तो बोध होगा की सभी एक दुसरे की पूरक और हमारे व्यक्तित्व को सुद्ढ़ तथा प्रभावशाली ढंग से रूपांतरित करती है | हम अपने जीवन की इन परिस्थितियों को प्रकाश और अंधकार के समानंतर् देख सकते हैं, जैसे हम प्रकाश में किसी भी वास्तु विशेष को अपनी द्रष्टी से देखने पर उसके मूल रूप को समझ सकते हैं परन्तु उसी वास्तु को अंधकार में देखे तो शायद ही पूर्णतः समझ सकें, यहां हम देखते हैं कि अंधकार के होने पर प्रकाश का महत्त्व प्रखर रूप से सामने आया है |  इस बात को हम इस उदाहरण से पूर्णतः समझ सकते हैं, जब हम वायु के बहने की ही दिशा में चलते हैं तो हम सहजता से चलते हैं लेकिन हम अपने सामने से आ रही वायु की दिशा में चलते हैं तो हमें चलने में अपनी अत्यधिक ऊर्जा का प्रयोग करते हैं जिसमें हमारा प्रयास प्रखरता से सामने आ रहा है |     अंततः निष्कर्ष यही निकलता है  कि हमारे जीवन की सभी अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियां हमारे व्यक्तित्व को प्रखर रूप से सामने लाती हैं और हम इनक...

समाज में मानवीय संम्बंधों के बीच बढ़ते अविस्वाश और टूटते रिश्तों को रोकने का एक मात्र उपाय

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मेरा यह लेख समर्पित है मेरे मित्र अमित जी को, जिनकी प्रेरणां  से मैं इस विषय पर प्रकाश डाल रहा हूँ, आज हमारे पारिवारिक तथा सामाजिक  संबंधों के टूटने तथा बढ़ती दूरियों के लिए मूलतः हमारी जीवन के प्रति हमारी दृष्टि अर्थात हमारे जीवन मूल्य  जिम्मेवार है। अधिकतर हम  आज व्यक्ति को उसके आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा धार्मिक इत्यादि जीवन में उसकी उपलब्धियों तथा ख्याति के आधार पर उसका मूल्यांकन करते हैं और इसी के आधार पर ही उसके साथ अपने संबंधों को रखते हैं |   अधिकतर आज हमारे पारिवारिक तथा सामाजिक संबंधों के प्रति हमारा जीवन दृष्टिकोण सर्वप्रथम स्वयं का स्वार्थसिद्ध करना है | मानवीय संबंधों का आधार जब भी  स्वयं का स्वार्थसिद्ध करना मूल रूप से  होगा तो स्वार्थसिद्धी के उपरांत भी वह सम्बन्घ निरंतर रहेगा इसकी कम ही सम्भावना है, इसको हम इस प्रकार भी कह सकते हैं कि हम केवल अपने मतलब के लिए ही सम्बन्ध रखते हैं जो मतलब निकल जाने पर भी चलता रहे, इसकी सम्भावना नहीं के बराबर ही होती  है |    अगर हम जीवन के...

हमारे जीवन में त्योहारों का महत्त्व, द्वितीय भाग

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त्यौहार हमारे जीवन में एक ऐसा उत्सव  है  जब हम अपनी भौतिक चेतना से आध्यात्मिक चेतना की ओर उन्मुख होते हैं, यहाँ हम केवल अपने सामाजिक जीवन में गतिशील आचार विचार की ही बात नहीं करते बल्कि त्यौहार में अंतर्निहित मूल भावना को अपने मानवीय संबंधों के बीच आचरण में उतारने का प्रयास करते हैं इस प्रकार हम अपनी पहचान को जानने के अधिक करीब होते हैं | यह कुछ ऐसा ही है जैसे सूर्योदय के उपरांत पृथ्वी अंधकारमय वातावरण से प्रकाशमय वातावरण में रूपांतरित हो जाती है और हम पृथ्वी पर सभी कुछ स्पष्ट रूप में देख सकने में समर्थ हो जाते हैं | उत्सव भी इसके ही  समांनांतर हमारे जीवन  को इस प्रकार प्रकाशित करते हैं कि हम अपने जीवन को स्पष्ट रूप में देख सकने समर्थ हो जाते हैं |  उपरोक्त कथन को अगर हम समझे तो यह अवस्था हमारी अपने से आत्मसाक्षत्कार होने के करीब पहुँचने की है और अपने इस मूल स्वाभाव से निर्देशित हमारा आचरण हमारे स्वभावानुकूल ही होगा |   हमारा ध्येय मुख्यतः इस बात पर केंद्रित है कि त्योहरों द्वारा मूलतः हमारे अंतःकरण में उत्स...

हमारे जीवन में त्योहारों का महत्त्व, प्रथम भाग

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 आज हमारे जीवन में त्योहारों का महत्त्व  इतना हो गया  है जितना साँस लेने का महत्त्व फरक इतना है साँस लिए बिना हम एक समय तक ही जीवित रह सकते जो हम अच्छी तरह समझते है परन्तु त्योहारों के बिना हम जीवित तो रह सकते हैं परन्तु यह जीवन कुछ ऐसा ही है जिसमें हमारी जीवन ऊर्जा लगातार घट रही है और शायद ही हम इसे सत -प्रतिसत समझ सकें |  लगभग आज हम त्योहारों में अन्तर्निहित संदेशों को अंगीकार करने में असमर्थ हैं क्योंकि आज हमारी समूल मानसिकता त्यौहार को मूल रूप में मनाने की वजाय हम ढोंग तथा श्रेष्ठता  प्रदर्शित करने के चलते त्यौहार को भी अपने सामाजिक रूतबे को बढ़ाने के प्रतीक के रूप में ही देखते हुए केवल  बाहरी रूप में ही मनाते है | यह मानसिकता हमारे स्वाभाव में एक ऐसे बीज का बीजारोपण करेगी जिसके उपरांत हम दोहरी जिंदगी जीने को बाध्य होंगे, जिसमें हमारे स्वाभाव में द्वन्द , बहरुपियापन, अशांति तथा जीवन के प्रति नकारात्मक नजरिया आदि जैसे जीवन मूल्यों की प्रधानता होगी  |  वास्तव में त्यौहार हमारे जीवन में एक ऐसे...

धन व् ऐशवर्य को प्राप्त करने का एकमात्र उपाय

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 भगवान  बिष्णु जी की इस फोटो में छिपे  सन्देश को समझने का प्रयास तथा उसका उल्लेख करना आज हमारे लिए प्रासंगिक होगा | इस फोटो में हम देवी लक्ष्मी जी को भगवान बिष्णु जी के चरणों के समीप विराजमान देख रहे हैं,  हम लक्ष्मी जी को धन तथा अतुलनीय  ऐष्वर्य के प्रतीक के रूप जानते हैं |  इस फोटो को देखने से कुछ इस तरह का भी सन्देश मिलता है कि धन  तथा ऐष्वर्य का स्वामी वह व्यक्ति है जिसमें  भयंकर बिषधरी शेषनाग की शैया पर बिना किसी भय तथा डर के आसीन हो सकने का गुण हो |   अगर हम उपर्युक्त फोटो के सन्देश को अपने जीवन के साथ जोड़कर देखें तो हमें अपनी इंद्रियों से प्रेरित  भावनाओं के प्रभाव से तटस्थ होना होगा अर्थात लालच ,छल ,कपट, ईर्ष्या ,द्वेष आदि के प्रभाव को अपने ऊपर कम  करना होगा तभी हम अतुलनीय धन तथा ऐष्वर्य के स्वामी बन सकेंगे |         

मनुष्य की जीवन यात्रा का सर्वश्रेष्ठ पड़ाव

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वर्तमान में व्यक्ति अपनी सभ्यता  परिवर्तन के जिस पड़ाव पर है, उस अवस्था में हम व्यक्ति  को उसके अपने विकास या पतन, किस रूप में देखते हैं को समझना महत्वपूर्ण होगा |  आज समाज में लगभग प्रत्येक  व्यक्ति हर वो भौतिक सम्पदा प्राप्त करना चाहता है जो उसके पास नहीं है और है तो उसे और अधिक पाने का प्रयास करता है, यह व्यक्ति का स्वाभाविक गुंण तथा उसकी सर्जनशीलता का जीवंत रूप है | परन्तु महत्वपूर्ण यह है कि व्यक्ति भौतिक सम्पदा को किस कीमत पर प्राप्त करने का प्रयास कर रहा है |  आज समाज के प्रत्येक पहलु जैसे सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक तथा पत्रकारिता इत्यादि के अंतर्गत अधिकतर  व्यक्ति के गतशील होने का मूल लक्ष्य अपनी इच्छाओं  को पूरा करना है, यहाँ तक तो हम व्यक्ति के स्वाभाविक गुण को ही देखते हैं परन्तु व्यक्ति जब अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए किसी दुसरे व्यक्ति या अनगिनत व्यक्तिओं की इच्छओं के विरुद्ध और कभी - कभी तो उनको समाप्त करने से भी नहीं चुकता, को देखतें हैं तो हम व्यक्ति  के इस रूप को क्या कहेंगे ? विकासशील...